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ग़ज़ल
सरज़मीन-ए-चिश्त की आब-ओ-हवा कुछ और हैदीन-ओ-दुनिया से निराला और ही कुछ तौर है
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
क़िता'
कभी हयात का ख़ौफ़ और कभी ममात का डर'अली हैं हामी तो क्यूँ कर है मुश्किलात का डर
सक़लैन अहमद जाफ़री
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ना'त-ओ-मनक़बत
दीन-ए-अहमद का 'अली हैं वो चमकता आफ़ताबजिन की 'अज़्मत और रंगत और ज़िया कुछ और है
महमूद अहमद रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
सानी-ए-बद्रुद्दुजा शेर-ए-ख़ुदा कुछ और हैरम्ज़-ए-इल्लल्लाह में मुश्किल-कुशा कुछ और है
रियाज़ अहमद
कलाम
नीस्ती हस्ती है यारो और हस्ती कुछ नहींबे-ख़ुदी मस्ती है यारो और मस्ती कुछ नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
कर मद्ह शह-ए-जिन्न-ओ-बशर और ज़्यादाजाएगी तेरी फ़िक्र निखर और ज़्यादः
तुफ़ैल अहमद मिस्बाही
शे'र
नीस्ती हस्ती है यारो और हस्ती कुछ नहींबे-ख़ुदी मस्ती है यारो और मस्ती कुछ नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
जो 'अली से बुग़्ज़ रक्खे उस की ये पहचान हैसोचता कुछ और है और बोलता कुछ और है
मक़बूल अहमद अंसारी
सूफ़ी उद्धरण
फ़क़ीर अल्लाह के वजूद को साबित करने की कोशिश नहीं करता, वो जानता है कि सूरज का सबूत देखने वाले की आँख ही दे सकती है।
वासिफ़ अली वासिफ़
ग़ज़ल
सारी ख़िल्क़त राह में है और हो मंज़िल में तुमदोनों 'आलम दिल से बाहर हैं फ़क़त हो दिल में तुम
अहमद हुसैन माइल
ग़ज़ल
है एक मकाँ और एक मकीं तू और नहीं मैं और नहींहै नाम उसी का हक़-उल-यक़ीं तू और नहीं मैं और नहीं
अब्दुल हादी काविश
कलाम
मैं ख़याल हूँ किसी और का मुझे सोचता कोई और हैसर-ए-आईना मिरा 'अक्स है पस-ए-आईना कोई और है