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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ज़दः नाविकम ब-जाँ यक दो सेह चार-ओ-पंच-ओ-शिशकुश्त: चू बंद: हर ज़माँ यक दो सेह चार-ओ-पंच-ओ-शिश
अमीर ख़ुसरौ
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ग़ज़ल
तहज़ीब-ए-इमारत रोज़ नए अंदाज़-ए-शबिस्ताँ बदलेगीऐ दोस्त मगर शायद ये कभी दुनिया-ए-ग़रीबाँ बदलेगी
नीयाज़ मकनपुरी
सूफ़ी कहावत
जादा-ए-दुज़्द ज़दा ता चहल रोज़ ऐमन अस्त।
रास्तों पर हमले के बाद रास्ता चालीस दिन तक सुरक्षित रहता है।
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
मज़्दा-ए-वस्ल बहुत दिन से रोज़ सुना करते हैंसालहा गुज़रे कि हम रोज़ गिना करते हैं