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शे'र
गरचे कैफ़ियत ख़ुशी में उस की होती है दो-चंदपर क़यामत लुत्फ़ रखती है ये झुँझलाने की तरह
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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कवित्त
सर्द ते जल की ज्यों दिन तें कमल की ज्यों
सर्द ते जल की ज्यों दिन तें कमल की ज्योंधन तें ज्यों थल की निपट सरसाई है
चिंतामणि
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ ज़े-कस्रत बर रुख़-ए-वह्दत नक़ाब अंदाख़्तीतालिबाँ रा ज़ीं हिजाब अंदर अ’ज़ाब अंदाख़्ती
फ़ज़ीहत शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ क़िब्लः-ए-ईमान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ का'बः-ए-ईक़ान-ए-मन गाहे नज़र बर मन फ़िगन
लताफ़त वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ऐ बे-वफ़ा जानी कि ऊ बर बुल-वफ़ा 'आशिक़ न-शुदक़हर-ए-ख़ुदा बाशद कि बर लुत्फ़-ए-ख़ुदा 'आशिक़ न-शुद
रूमी
शे'र
रात गए यूँ दिल को जाने सर्द हवाएँ आती हैंइक दरवेश की क़ब्र पे जैसे रक़्क़ासाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ख़ेज़ ऐ दिल ज़ीं बर अफ़्गन मरकब-ए-तहवील रावक़्फ़ कुन बर ना-कसाँ आँ आ'लम-ए-तातील रा
हकीम सनाई
ग़ज़ल
रात गए यूँ दिल को जाने सर्द हवाएँ आती हैंइक दरवेश की क़ब्र पे जैसे रक़्क़ासाएँ आती हैं
मुज़फ़्फ़र वारसी
फ़ारसी कलाम
ऐ ’आरिफाँ रा पेशवा गाहे नज़र बर मन फ़िगनऐ आ'शिक़ाँ रा रहनुमा गाहे नज़र बर मन फ़िगन
अब्दुल रहीम कुंज्पुरी
शे'र
न छेड़ ऐ हम-नशीं कैफ़ियत-ए-सहबा के अफ़्सानेशराब-ए-बे-ख़ुदी के मुझ को साग़र याद आते हैं
हसरत मोहानी
शे'र
चाटती है क्यूँ ज़बान-ए-तेग़-ए-क़ातिल बार बारबे-नमक छिड़के ये ज़ख़्मों में मज़ा क्यूँकर हुआ
अमीर मीनाई
शे'र
याद में उस क़द-ओ-रुख़्सार के ऐ ग़म-ज़दगाँजा के टुक बाग़ में सैर-ए-गुल-ओ-शमशाद करो