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ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुल्फ़-ए-लैला-ए-दो-’आलम का जिसे सौदा नहींहै वो दीवाना ख़ुदा को उस ने पहचाना नहीं
अख़तर ख़ैराबादी
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विषय
आ’शिक़
आशिक़
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
अक़्ल दर सौदा-ए-इश्क़ उस्ताद नीस्तइश्क़ कार-ए-अक़्ल-ए-मादरज़ाद नीस्त
फ़रीदुद्दीन अत्तार
ग़ज़ल
ये जो लगा है तीर मुझे ऐ कमान-ए-इश्क़महशर में देखियो यही होगा निशान-ए-इश्क़
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
कहियो ऐ क़ासिद पयाम उस को कि तेरे हिज्र सेजाँ-ब-लब पहुँचा नहीं आता है तू याँ अब तलक
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ना-गहाँ अज़ 'ऐन-ए-क़ुदरत यक नज़र कर्दम बरू'आलमे सर-गश्तः दीदम माँदः दर सौदा-ए-'इश्क़
रूमी
ग़ज़ल
धोके पे धोका खाए जा 'इश्क़ को सादा कार करहुस्न के दिल में घर बना हुस्न पर ए'तिबार कर
नख़्शब जार्चवि
ग़ज़ल
आह फिर तुझ को ऐ बे-रहम ख़बर करते हैंया'नी आ जा दम-ए-आख़िर है सफ़र करते हैं
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ना'त-ओ-मनक़बत
दिल में याद-ए-मुस्तफ़ा है सर में सौदा ग़ौस कामेरी हर हर साँस करती है वज़ीफ़ा ग़ौस का