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शे'र
शकील बदायूँनी
शे'र
ख़ुदा-या ख़ैर करना नब्ज़ बीमार-ए-मोहब्बत कीकई दिन से बहुत बरहम मिज़ाज-ए-ना-तवानी है
जिगर मुरादाबादी
कलाम
शकील बदायूँनी
बैत
हमारे मय-कदे में ख़ैर से हर चीज़ रहती है
हमारे मय-कदे में ख़ैर से हर चीज़ रहती हैमगर इक तीस दिन के वास्ते रोज़े नहीं रहते
मुज़्तर ख़ैराबादी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बाग़बाँ हर-जा कि बाशद ख़ैर-ख़्वाह-ए-गुलशनममन फ़िदा-ए-अं'दलीब-ओ-ख़ाक-ए-राह-ए-गुलशनम
ख़्वाजा मीर दर्द
शे'र
बहुत ही ख़ैर गुज़री होते होते रह गई उस सेजिसे में ग़ैर समझा हूँ वो उन का पासबाँ होगा
रियाज़ ख़ैराबादी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम अहमद चर्म-पोश
मख़दूम अहमद चर्म-पोश बिहार शरीफ़ की शान और गरिमा, भारत के इतिहास का एक सुनहरा अध्याय
रय्यान अबुलउलाई
ग़ज़ल
इलाही ख़ैर करना इ'श्क़ की मंज़िल परेशाँ हैइधर है इज़्तिराब-ए-दिल उधर क़ातिल परेशाँ है
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
फ़ारसी कलाम
बाग़बाँ हर जा कि बाशद ख़ैर-ख़्वाह-ए-गुलशनममन फ़िदा-ए-अं'दलीब-ओ-ख़ाक-ए-राह-ए-गुलशनम