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कलाम
रहा बार-ए-अमानत गो वबाल-ए-दोश रस्ते भरन कंधा भी मगर हम ने तह-ए-बार-ए-गराँ बदला
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
क़िता'
कुछ ख़बर भी है तुझे ऐ तिश्ना-काम-ए-ज़िंदगीहो चुका पुर अब छलकने को है जाम-ए-ज़िंदगी
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
मिरे दिल में वुरूद-ए-जल्वा-ए-जानाना होता हैये सब मा'मूरा-ए-’आलम अभी वीराना होता है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ना'त-ओ-मनक़बत
करें कुछ यूँ ही शौक़-ए-दिल अपना पूराकरें आओ ज़िक्र-ए-दयार-ए-मदीना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
मगर 'मज्ज़ूब' तो महव-ए-ख़याल-ए-ज़ुल्फ़-ए-पेचाँ हैतिरी जो बात है उलझी हुई मा’लूम होती है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
दकनी सूफ़ी काव्य
एक मात्र स्वामी
बदहु किन होड़ माधउ मोसिउठाकुर ते जनु जनते ठाकुरु पेलु परिउ है तोसिउ
नामदेव
ग़ज़ल
तिरी चश्म-ए-मय-गूँ है जाम-ए-मोहब्बततिरी ज़ुल्फ़-ए-मुश्कीं है दाम-ए-मोहब्बत