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ना'त-ओ-मनक़बत
सख़ा-ए-ख़्वाजा-ए-ख़ानून का है तज़्किरा घर-घरकोई ख़ाली नहीं जाता है इस दरबार में आकर
ख़्वाजा नाज़िर निज़ामी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुस्लिम है जहाँ में रुतबा-ए-आ’ली क़तादा काशुजाअ'त में नहीं मिलता कोई सानी क़तादा का
वासिफ़ रज़ा वासिफ़
ग़ज़ल
रहा करता है अक्सर तज़्किरा बर्बादी-ए-दिल कामैं बिगड़ा हूँ तो अफ़्साना बना हूँ उन की महफ़िल का
अफ़सर सिद्दीक़ी अमरोहवी
ग़ज़ल
सय्यदा ख़ैराबादी
नज़्म
यारब दिल-ए-मुस्लिम को इक ज़िंदा तमन्ना दे
यारब दिल-ए-मुस्लिम को इक ज़िंदा तमन्ना देजो क़ल्ब को गरमा दे जो रूह को तड़पा दे
अल्लामा इक़बाल
गूजरी सूफ़ी काव्य
अंदर नहीं, बाहर नहीं, बल्कि पिया हर चीज़ है
अंदर नहीं बाहर नहीं बल्कि पिया हर चीज़ हैया बास जियूँ संदल मनें या जल्वा-ए-रुख़्सार ख़ुश
 
 