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ग़ज़ल
जा-ब-जा तुम बैठने उठने लगे जिस-तिस के पासकौन कहता है कहाँ किस वक़्त किस दिन किस के पास
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
शे'र
अदा से हाथ उठने में गुल राखी जो हिलते हैंकलेजे देखने वालों के क्या क्या आह छिलते हैं
नज़ीर अकबराबादी
ग़ज़ल
मन-ओ-तू का हिजाब उठने न दे ऐ जान-ए-यकताईकहीं ऐसा न हो बन जाऊँ ख़ुद अपना तमन्नाई
हफ़ीज़ होश्यारपुरी
कलाम
कामिल शत्तारी
समस्त