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ग़ज़ल
ये दिल का'बे का का'बा है ये बुत-ख़ाने का बुत-ख़ानाइसे कहते हैं आ'शिक़ जल्वा-गाह-ए-हुस्न जानाना
अनवर फ़िरोज़पुरी
कलाम
मैं तन्हा आब-ओ-रंग बज़्म-ए-इम्काँ हो नहीं सकताये दिल वापस अगर तू इस में मेहमाँ हो नहीं सकता
सीमाब अकबराबादी
फ़ारसी कलाम
हक़ रा ब-तलब-ए-मस्जिद-ओ-मय-ख़ान: कुदाम अस्तअज़ बाद: ब-गो शीश:-ओ-पैमान: कुदाम अस्त
हज़ीन ज़ैदपुरी
कलाम
ऐ जान-ए-जहाँ कब तक ये गोशा-ए-तन्हाईसब दीद के तालिब हैं जितने हैं तमाशाई
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ग़ज़ल
सरज़मीन-ए-चिश्त की आब-ओ-हवा कुछ और हैदीन-ओ-दुनिया से निराला और ही कुछ तौर है
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
ग़ज़ल
'इश्क़ में बे-कार देखा ताज-ओ-तख़्त-ओ-फ़र्श-ए-गिलक़ैस को हर ख़ार-ए-फ़र्श क़ाक़ुम-ओ-संजाब था
अबुल हयात क़ादरी
कलाम
पढ़ो बादा-गुसारो अब नमाज़-ए-ख़ुद फ़रामोशीसदा-ए-क़ुलक़ुल-ए-मीना हुई तकबीर-ए-मय-ख़ाना
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
तुझ पे क़ुर्बां ऐ हसीन-ओ-महजबीं ये जान-ओ-दिलतू अज़ल ही से ख़ता-कारों का पर्दा-पोश है