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सूफ़ी कहावत
क़द्र-ए-बाबा आँ ज़माँ दानी कि खुद बाबा शवी
जब ख़ुद इंसान पिता के पद पर पहुँचता है तब उसको अपने पिता के महत्व का आभास होता है
वाचिक परंपरा
फ़ारसी कलाम
रू-ए-जमई'यत कुजा बीनद ब-उ'म्र-ए-ख़्वेशतनआँ कि बाशद हर ज़माँ आशुफ़्तः-ए-रु-ए-दिगर
शम्स मग़रिबी
फ़ारसी कलाम
मन कीस्तम ता हर ज़माँ पेश-ए-नज़र बीनम तुरागाहे गुज़र कुन सू-ए-मन ता दर गुज़र बीनम तुरा
हिलाली चुग़ताई
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फ़ारसी कलाम
चूँ रुख़त रा हर ज़माँ हुस्न-ओ-जमाले दीगरस्तलाजरम हर-दम मरा बा तू विसाले दीगरस्त
शम्स मग़रिबी
फ़ारसी कलाम
यार-ए-मा रा हर ज़माँ नाम-ओ-नीशाने दीगर अस्तसूरत-ओ-शक्ल-ए-ऊ रा हर-वक़्त शाने दीगर अस्त
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
मन कुजा बूदम 'अजब बे-तू दरीं चन्दीं ज़माँदर पय-ए-तू हम-चु तीर-ओ-दर कफ़-ए-तू चूँ कमाँ
रूमी
ना'त-ओ-मनक़बत
यही इल्तिजा है शह-ए-ज़माँ तिरे आस्ताने पे सर रहेमेरी सज्दा-रेज़ी चमक उठे जो नसीब में तिरा दर रहे
ग़ुलाम क़ुतुबुद्दीन फ़रीदी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ ज़मीं तुझ पर नुज़ूल-ए-आसमाँ होने को हैगोया नूर ख़ालिक़-ए-'आलम अ'याँ होने को है
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
वो सरताज-ए-रुसुल आए रिसालत हो तो ऐसी होवो बख़्शाएँगे कुल उम्मत शफ़ा'अत हो तो ऐसी हो
ज़ामिन निज़ामी
फ़ारसी कलाम
ज़मीन-ओ-आसमाँ रा जल्व:-गाह-ए-यार मी-बीनमवजूद-ए-ज़र्र:-ओ-ख़ुर्शीद ज़ाँ रुख़्सार मी-बीनम
ग़ुलाम हसन बीथवी
ना'त-ओ-मनक़बत
अव्वल आख़िर ज़ाहिर बातिन सब के हामी सब के ज़ामिनसब के आक़ा सब के मोहसिन सल्लल्लाहु-अ'लैहे-वसल्लम