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शे'र
वो चाँद सा मुँह सुर्ख़ दुपट्टा में है रख़्शाँया मेहर कहूँ जल्वा-नुमा ज़ेर-ए-शफ़क़ है
मीर मोहम्मद बेदार
सूफ़ी कहानी
ख़ुदा का मूसा को हुक्म देना कि मुझको उस मुँह से बुला कि जिससे कभी गुनाह ना किया हो- दफ़्तर-ए-सेउम
अगर तू दुआ’ के वक़्त ज़िक्र-ए-इलाही में मशग़ूल नहीं रहता तो जा साफ़ बातिन लोगों से
रूमी
कलाम
खुल गए ज़ख़्मों के मुँह क्या जाने क्या कहने को हैंक्या नमक-दान-ए-सितम को बे-मज़ा कहने को हैं
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
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ग़ज़ल
औघट शाह वारसी
ग़ज़ल
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दियाहुई महव-ए-हैरत-ए-बे-खु़दी मुझे आईना सा बना दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दियावहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
तू ने अपना जल्वा दिखाने को जो नक़ाब मुँह से उठा दियावहीं हैरत-ए-बे-खु़दी ने मुझे आईना सा दिखा दिया
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
शे'र
ग़ैर मुँह तकता रहा मैं अर्ज़-ए-मतलब कर चुकामुझ से उन से आँखों आँखों में इशारः हो गया
संजर ग़ाज़ीपुरी
सूफ़ी कहानी
बादशाह और कनीज़ - दफ़्तर-ए-अव्वल
सर-ए-राह एक लौंडी नज़र पड़ी कि देखते ही दिल-ओ-जान से उस का ग़ुलाम हो गया। मुँह
रूमी
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
शाह ’आलम-गीर सानी के क़त्ल के वाक़ि’आ ही पर नज़र डालो। देखो कि हिंदू मर्द तो