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ग़ज़ल
गिले शिकवे करेंगे ज़ुल्म के अब उस सितम-गर सेकहो फिर क्या करे कोई जो ऊँची हो गई सर से
सफ़ी औरंगाबादी
कलाम
वो गिले-शिकवे गए वो प्यार की बातें गईंअब तो उन को दूर से ही देखता रहता हूँ मैं
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
समस्त