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सूफ़ी लेख
देव और बिहारी विषयक विवादः उपलब्धियाँ- किशोरी लाल
2. क्रियापदः- बिहारी ने यत्रतंत्र ‘कीन’ ‘दीन’ जैसी अवधी क्रियाओं का भी प्रयोग किया है, जो
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सन्तों की प्रेम-साधना- डा. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम. ए., एल-एल. बी., पीएच. डी.
सन्तों ने प्रेम का आदर्श चकोर एवं मीन माना है। कबीर की भांति अधिक सन्तों ने
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
इस संबंध में डा. रामगोपाल शर्मा ‘दिनेश’ का यह कथन भी द्रष्टव्य है- पवित्र और आदर्श
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
तुझें भजन मजंप्रिय गा दातारा।साधक कबीर सुधारक भी जबरदस्त थे। सच्चे सुधारक का स्वयं क्रियावान् होना
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
तुलसीदासजी की सुकुमार सूक्तियाँ- राजबहादुर लमगोड़ा
वचन समय अनुहारि- (1) समय तथा स्थान का विचार वार्ता के लिये आवश्यक ही है। (2)
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
दारा की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्रों में सुलेमान को 1661 में मृत्यु-दंड मिला और सिपहर
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह
दारा की मृत्यु के पश्चात् उसके पुत्रों में सुलेमान को 1661 में मृत्यु-दंड मिला और सिपहर
अविनाश कुमार श्रीवास्तव
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
अपनी ओर निभाइये, हारि परै की जीति।।ऊपर के सिंहावलोकन से स्पष्ट है कि संत साहित्य के
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत साहित्य
अपनी ओर निभाइये, हारि परै की जीति।।ऊपर के सिंहावलोकन से स्पष्ट है कि संत साहित्य के
परशुराम चतुर्वेदी
सूफ़ी लेख
मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
(3)मीरा रामायण का निष्कर्ण है तन्मयता का आदर्श। मीरा भी स्वान्तःसुखाय है। “जाके प्रिय न राम
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
(पेज नं. 68 उपलब्ध नहीं है।)।उत्कृष्ट रचना की है। यह बात सूर में नहीं है। सूरसागर
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
करतल के आँवले की तरह से हमने तुझे ज्ञान दिखाया। बहमनी काल में संतसाहित्य क्यों पिछड़ा