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सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
पंडित अंबिकादत्त-व्यास-वर्णित गद्य संस्कृतटीका का कर्म
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रैदास और सहजोबाई की बानी में उपलब्ध रूढ़ियाँ- श्री रमेश चन्द्र दुबे- Ank-2, 1956
त्रेताँ विविध जग्य नर करहीं। प्रभुहिं समर्पि कर्म भव तरहीं।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
अन्त भाग-राम रंग मन वच कर्म, सुभ चिंतक निस बास।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
उधो कर्म कियो मातुल बधि मदिरा-मत्त प्रमाद। सूरश्याम एते अवगुन में निर्गुन तें अति स्वाद।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
आवन जाना हुक्म तिसैका, हुक्मै बुज्झि समावहिंगे। जब चूकै पंच धातु की रचना, ऐसे कर्म चुकावहिंगे।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता- शाल़ग्राम श्रीवास्तव
अर्द्ध अर्द्ध लै भाठो रीपी, ब्रह्म अगिनि उदगारी।मूँद मदन कर्म कटि कसमल संतन चुवै अगारी।।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
हाफ़िज़ की कविता - शालिग्राम श्रीवास्तव
अर्द्ध अर्द्ध लै भाठो रीपी, ब्रह्म अगिनि उदगारी।मूँद मदन कर्म कटि कसमल संतन चुवै अगारी।।
सरस्वती पत्रिका
सूफ़ी लेख
दारा शिकोह और बाबा लाल बैरागी की वार्ता
बाबा लाल – हृदय की आकृति वायु की श्वास की भाँति है।21-दारा शुकोह – हृदय का कर्म क्या है?
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
मिस्टिक लिपिस्टिक और मीरा
हमारे साहित्य की सब से उत्तम पुस्तक कर्म का पूरा विश्लेषण करती है। ज्ञान का पूरा
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
सुश्री पद्मावती शबनम लिखती हैं- ‘मीरां ने अपने आराध्य को बारबार जोगी नाम से संबोधित किया
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सन्तों की प्रेम-साधना- डा. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम. ए., एल-एल. बी., पीएच. डी.
हरिरस में माते फिरै, गृह बन कौन विचार।। उपर्युक्त पंक्तियाँ इस बात की द्योतक है कि प्रेम,
सम्मेलन पत्रिका
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कन्नड़ का भक्ति साहित्य- श्री रङ्गनाथ दिवाकर
यह भक्ति मार्ग अन्य ज्ञान-कर्म मार्ग की अपेक्षा अधिक लोक-प्रिय बन गया इसका कारण यह है