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सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
मनहि दीनता होई।।तेहि काँ काज सिद्ध कै जानौ,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
मीरां के जोगी या जोगिया का मर्म- शंभुसिंह मनोहर
नमो गज तारण मारण ग्राह।नमो व्रज काज सुधारण वाह।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
निर्गुण कविता की समाप्ति के कारण, श्री प्रभाकर माचवे - Ank-1, 1956
कर्मभ्रष्ट झाले द्विज। म्लेंच्छांपुढे बोलती वेदबीज। सत्व गेले आचि काज। मंदमती झाले जाणाता।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कवि वृन्द के वंशजों की हिन्दी सेवा- मुनि कान्तिसागर - Ank-3, 1956
प्रसन्न होहिंगे देवता, कविता सुधरण काज, प्रीत रीत चाहत कह्यों, देहु देव वर आज।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
जो तुह काज न आवे आजू, सो मेरे पुनि कवने काजू।। मधुमालती, 172.3-5
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूर की सामाजिक सोच, डॉक्टर रमेश चन्द्र सिंह
कंस बध्यौ कुबिजा कौं काज।और नारि हरि कौं न मिली कहुँ, कहा गँवाई लाज।।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
कारन बिनहीं काज कौ उदै होइ जिहि ठौर। पहिलौ भेद बिभावना कौ आवत सिर-भौर।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
तिन टीका अच्छिर अर्थ कियो सुजस के काज।।22।। टीका और अनेक हैं किय अपनी रूचि पाय।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कदर पिया- श्री गोपालचंद्र सिंह, एम. ए., एल. एल. बी., विशारद
अनदाना यह तूने किया जो सबके आया काज।। बाल बीका ना कर सकै जो बैरी होय जहान।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
रामावत संप्रदाय- बाबू श्यामसुंदर दास, काशी
लंक प्रजारि असुर सब मारयो। राजा रामजि के काज सँवारयो।। घंटा ताल झालरी बाजै। जगमग जोति अवधपुर छाजै।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
गोदानन के काज मनौं मृगफिरि घर आयौ।।तिनि बहु पुरान मो सौं सुने असन वसन बहु भेट दिय।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
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अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
हजरति कौ मन मो हित भरयौ, याकै पारैं अंतर परयौ। सत्वर साहि बुलायौ राज, दक्षिन ते मेरे ही काज।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कुतुबनकृत मृगावती के तीन संस्करण- परशुराम चतुर्वेदी
‘आइ सखी घर कीत अँजोरा। चाँद चउद्दसि भए उन भयेरा।घर आँगन भरि रहा अँजोंरा। दिनकर काज करहि निसि भोरा।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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मधुमालती नामक दो अन्य रचनाएँ - श्रीयुत अगरचंद्र नाहटा
कौतुक कथा रचुं चित साह, जो जे काज पढे चित साह। साम दाम बुद्धि भेद जों आई, बहतु रस सनगार बनाई।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(200) वाकी मोको तनिक न लाज। मेरे सब वह करत है काज।।मूड़ से मोको देखत नंगी। ऐ सखी साजन ना सखी कंघी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(200) वाकी मोको तनिक न लाज। मेरे सब वह करत है काज।। मूड़ से मोको देखत नंगी। ऐ सखी साजन ना सखी कंघी।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
क्या उद्धव ने ग्राम्य संस्कृति का विरोध किया था? नगर संस्कृति, दरबारी जीवन का समर्थन किया