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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(86) डाला था सब को मन भाया। टाँग उठाकर खेल बनाया।।कमर पकड़ के दिया ढकेल। जब होवे वह पूरा खेल।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(86) डाला था सब को मन भाया। टाँग उठाकर खेल बनाया।। कमर पकड़ के दिया ढकेल। जब होवे वह पूरा खेल।।
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संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
खेल परयो है तो सोँ।।1।।आपन देव देहरा आपन,
हिंदुस्तानी पत्रिका
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जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
मुहमद बाजी प्रेम कै, ज्यों भावै त्यों खेल। तिल फूलहिं के संग ज्यों, होइ फुलायल तेल।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह अकबर दानापुरी
अकबर उसी ने बार-ए-अमानत उठा लियाये मुश्त-ए-ख़ाक खेल गई अपनी जान पर
रय्यान अबुलउलाई
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उर्स के दौरान होने वाले तरही मुशायरे की एक झलक
तेरे जाँ-बाज़ तेरी तेग़ से होते हैं शहीदजान पर खेल के मैदान को सर करते हैं
सुमन मिश्रा
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समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’- मुल्ला वाहिदी देहलवी
समाअ’ की तीन किस्में हैं।एक समाअ’ तमाशे और खेल के तौर पर सुना जाए। तमाशा और
मुनादी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शहाबुद्दीन पीर-ए-जगजोत
एक ग्वाला जवाँ-साल मर गया था और लोग उसे जलाने की तैयारी कर रहे थे। उसकी
रय्यान अबुलउलाई
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हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
यहाँ के हिंदू मर्द और औ’रत की वफ़ादारी के बारे में कहते हैं कि हिंदू अपनी
फ़रोग़-ए-उर्दू
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अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
कहते हैं कि नादिरशाह ने क्रुद्ध होकर जब दिल्ली में क़त्ल-ए-आम का हुक्म दिया और खु़द