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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-मुठिया(136) एक जानवर रंग रँगीला, बिन मारे वह रोवे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-मुठिया (136) एक जानवर रंग रँगीला, बिन मारे वह रोवे।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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हिन्दुस्तानी तहज़ीब की तश्कील में अमीर ख़ुसरो का हिस्सा - मुनाज़िर आ’शिक़ हरगानवी
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
ये इ’श्क़ का अदना करिश्मा है कि ख़ुदा ख़ुद अपने बंदा की मोहब्बत में गिरफ़्तार है।
मुनादी
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पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
तेरि अरघानि भँवर सब लुबुधे तजहिं न नीबी वध।।पहली पंक्ति का अर्थ डॉ. अग्रवाल ने किया
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बहादुर शाह और फूल वालों की सैर
वो नूर के गले, वो रसीली आवाज़ें, वो सच्ची तानें, वो वक़्त की रागनी ,वो सुहाना
मिर्ज़ा फ़रहतुल्लाह बेग
सूफ़ी लेख
समाअ’ और आदाब-ए-समाअ’- मुल्ला वाहिदी देहलवी
ये भी वाज़िह रहे कि सिर्फ़ अच्छे क़िस्म के अश्आ’र सुने जा सकते हैं।बेहूदा,फ़ुहश और हज्विया
मुनादी
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सुल्तान सख़ी सरवर लखदाता-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
क़स्बा-ए-धोंकल में एक घोड़ी का मशहूर वाक़िआ’वज़ीराबाद (पंजाब) के मुत्तसिल तीन मील के फ़ासला पर एक
सूफ़ी
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लखनऊ का सफ़रनामा
अब हम नवाब वाजिद ’अली शाह (पैदाइश 1822 ’ईस्वी विसाल 1887 ’ईस्वी) से मंसूब बाग़ की
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
“सीदी मौला एक दरवेश थे, जो सुल्तान बलबन के अ’हद में विलायत-ए-मुल्क-ए-बाला से शहर (या’नी देहली)