आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "जौ"
सूफ़ी लेख के संबंधित परिणाम "जौ"
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
भाजै जात मरन जौ होय, मोसौ कहा कहै सब कोय। जौ भजिजै लरिजै गुन देखि, दुहूँ, भाँति मरिबोई लेखि।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जायसी और प्रेमतत्व पंडित परशुराम चतुर्वेदी, एम. ए., एल्.-एल्. बी.
निकसै घिउ न बिना दुधि मथे। जौ लहि आप हेराइ न कोई।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
(51) 125.5 जौ पै नाहीं अस्थिर दसा। जग उजार का कीजै बसा।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सुकवि उजियारे - पंडित मयाशंकर याक्षिक
जौ पै कहूँ दैहै तो भुजंग अंग भरेगी। भस्म लगाय आग आँख पजराय,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी काव्य में भाव ध्वनि- डॉ. रामकुमारी मिश्र
कैसेहुं नवहिं न माएं, जोबन गरब उठान। जौ पहिले कर लावै, सो पाछे रति मान।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई-संबंधी साहित्य (बाबू जगन्नाथदास रत्नाकर, बी. ए., काशी)
जौ भाषा जान्यौ चहत रसमय सरल सुभाइ। कबिता केसौराय की तौ साँचौ चितु लाइ।।29।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
(ख) सखी री! श्याम कहा हित जानै। सूरदास सर्बस जौ दीजै कारो कृतहि न मानै।।“
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
जाकर जीउ बसै जेहि सेतें तेहि पुनि ताकरि टेक।कनक सोहाग न बिछुरै अवटि मिलैं जौ एक।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
भ्रमर-गीतः गाँव बनाम नगर, डॉक्टर युगेश्वर
जौ कहुँ सुनत हमारी चरचा चालत हीं चपि जात। सुरभी लिखत चित्र की रेखा, सोचै हू सकुचात।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
हरिजी कृपा करै जौ अपनी, तौ गुरु के सबद कमावहिंगे, जीवत मरहु मरहु पुनि जावहु पुनरपि जन्म होई।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
तौ तौ करैं तो बांदुड़ौं, दुरि दुरि करै तो जाऊँ।ज्यूँ हरि राखै त्यूँ रहौं, जौ देवै सो खाऊँ।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चतुर्भुजदास की मधुमालती- श्री माताप्रसाद गुप्त
जौ नहाइ आवहिं एहि ठाईं। होइ बात मधु मालति नाईं। अज्ञा लेइ चलहु अब गेहा। मिलिहौ बहुरि भयौ जो नेहा।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूरदास का वात्सल्य-निरूपण, डॉ. जितेन्द्रनाथ पाठक
इत जौ जरो जात बिनु देखैं अब तुम दीन्हौं फूकि।यह छतिया मेरे कान्ह कुँवर बिनु, फटि न भई द्वै टूकि।।
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
ग़िज़ा:ऊपर ज़िक्र आया है कि तीस साल तक दाऊदी रेज़े रखे । इफ़्तार कभी सिर्फ़ पानी,
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
आप का जन्म सन 1630 ई. में हुआ. आप ने पहले नूर मुहम्मद मदारी से शिक्षा
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
ज़फ़राबाद की सूफ़ी परंपरा
आप अपने पिता सैयद जियाउद्दीन के मुरीद ओ ख़लीफ़ा थे. आप ने अपना सम्पूर्ण जीवन ईश्वर
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
सूर की कविता का आकर्षण, डॉक्टर प्रभाकर माचवे
नैननि उहै रूप जौ देखौं।वे लिखते हैं, “गोपी और उसके नयनों के आचार का यही मर्म