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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
दर दिलश दरदे पदीद आमद अ’जब ।बे-क़रारश कर्द आँ दर्द अज़ तलब ।।
सुमन मिश्रा
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हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी - मैकश अकबराबादी
बरीं ग़म बा-हज़ाराँ आह-ओ-हसरततलब कर्दम ज़े दिल तारीख़-ए-रेहलत
मयकश अकबराबादी
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हज़रत बंदा नवाज़ गेसू दराज़ - सय्यिद हाशिम अ’ली अख़तर
1. खाना शुरूअ’ करे तो बिस्मिल्लाह कहे2.तलब-ए-रिज़्क़ में ग़मगीन न रहे
मुनादी
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हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
सिवाए बाब किसी की तलब नहीं है ‘फ़ना’हम उन के इ’श्क़ में हस्ती मिटाए जाते हैं
सुमन मिश्रा
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कबीर के कुछ अप्रकाशित पद ओमप्रकाश सक्सेना
माटी षण षण मेहेल बणाये, मुरष कहे घर मेरा।। आवेगा जमरा तलब लगावे, तो नहीं मेरा नहीं तेरा।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत ख़्वाजा गेसू दराज़ चिश्ती अक़दार-ए-हयात के तर्जुमान-डॉक्टर सय्यद नक़ी हुसैन जा’फ़री
मुनादी
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सूफ़ी क़व्वाली में गागर
जहाँ की हम को तलब है न यार का कुछ ग़मलिए हैं हम शह-ए-रौशन-ज़मीर की गागर
उमैर हुसामी
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लिसानुल-ग़ैब हाफ़िज़ शीराज़ी - मोहम्मद अ’ब्दुलहकीम ख़ान हकीम।
सालहा दिल तलब-ए-जाम-ए-जम अज़ मा मी-कर्दआँ चे ख़ुद दाश्त ज़े-बैगान: तमन्ना मी-कर्द
निज़ाम उल मशायख़
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हज़रत शैख़ बुर्हानुद्दीन ग़रीब
दस्त अज़ तलब न-दारम ता कार-ए-मन बर आयदया जाँ रसद ब-जानाँ या जाँ ज़े-तन बर आयद
सूफ़ीनामा आर्काइव
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बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
मुनादी
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सूफ़ी और ज़िंदगी की अक़दार
आज कल हमारे ज़ेहनों पर ये बात सवार है कि ख़ूब मेहनत कर के कमाना चाहिए।अपनी