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सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
या गाथा में होय कछू बेकाज ही।दीजौ सकल सुधार तुम्हें सब लाज ही।।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
कर्नाटक के संत बसवेश्वर, श्री मे. राजेश्वरय्या
तुम्हें प्रणाम न करने के कारण गले में पाश!मरोड़ना क्यों कर, धोना क्यों कर?
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
सूफ़ी क़व्वाली में महिलाओं का योगदान
थक के लेटा हूँ अभी मुझको उठाते क्यों होमैं ने माना तुम्हें परवा नहीं बंदे की ज़रा
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इन्सानियत में सूफ़ियों का हिस्सा (हज़रत शाह तुराब अ’ली क़लंदर काकोरवी के हवाला से) - डॉक्टर मसऊ’द अनवर अ’लवी
ऐ’ब उस को करने दो तुम कुछ न बोलो चुप रहो॥कह ले जो चाहे मुख़ालिफ़ हर्फ़-ए-नामौज़ूँ तुम्हें।
मुनादी
सूफ़ी लेख
Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
जी हाँ ! दरबान से जवाब दिया । बिलकुल यही वजह है । तुमने सूफ़ियों का
सुमन मिश्रा
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हज़रत शाह बर्कतुल्लाह ‘पेमी’ और उनका पेम प्रकाश
मुहम्मद शाह (1719-1748 AD)हज़रत किसी बादशाह के दरबार में नहीं गए न ही उनसे कोई उपहार
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
पाँच बातों को पाँच के क़ब्ल ग़नीमत समझो। उनमें से एक फ़राग़त भी है जो आज
मुनादी
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अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की चौथी क़िस्त
माया के छलों में सबसे पहली बात यह है कि यद्यपि तुम्हें यह स्थिर जान पड़ती