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सूफ़ी लेख
शैख़ फ़रीदुद्दीन अत्तार और शैख़ सनआँ की कहानी
गुफ़्त बर ख़ेज़-ओ-बयाओ-ख़म्र नोश ।चूं बनोशी ख़म्र, आई दर ख़रोश
सुमन मिश्रा
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मैकश अकबराबादी
ख़ुद मैकश और ख़ुद ही क़दह-नोश-ओ-मय-फ़रोशजाम-ओ-सुबू-ओ-शीशा-ओ-सह्बा लिए हुए
शशि टंडन
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ये मय-परस्तों का मय-कदा है ये ख़ानकाह-ए-अबुल-उ’ला हैकोई क़दह-नोश झूमता है तो कोई बे-ख़ुद पड़ा हुआ है
रय्यान अबुलउलाई
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत सय्यदना अमीर अबुल उला
(सफ़हा-15)वालिद-ए-मोहतरम से महरूम होने के बाद आपके जद्द अमीर अबदूस्सलाम आपकी हर तरह से दिल-जूई करते
रय्यान अबुलउलाई
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हज़रत सय्यिदना अ’ब्दुल्लाह बग़दादी - मैकश अकबराबादी
उस मज्लिस की नशिस्त हस्ब-ए-ज़ैल है।सद्र में एक क़ालीन और एक गाव-तकिया जिस पर हज़रत सय्यिद
मयकश अकबराबादी
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तज़्किरा हज़रत शाह तसद्दुक़ अ’ली असद
सीवान में क़दीम दौर से ही शे’री नशिस्तें हुआ करती थीं और यहाँ एक से एक
इल्तिफ़ात अमजदी
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हकीम सफ़दर अ’ली सफ़ा वारसी
इ’बरत बहराइची साहिब लिखते हैं कि ख़त में ग़ालिबन ख़ुर्द-ओ-नोश का सामान तलब किया था। मुलाज़िम