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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(234) सितार क्यों न बजा,औरत क्यों न नहाई?
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
जो मुझे कहते हैं सो यार वो बजा कहते हैंशे’र”
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
नौकर क्यों न रखा? उत्तर- ज़ामिन न था।(234) सितार क्यों न बजा,
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा शम्सुद्दीन मुहम्मद ‘हाफ़िज़’ शीराज़ी
बजा-ए-लौह-ए-सीमीं दर कनारशफ़लक़ बर सर निहादश लौह-ए-संगी॥
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
उर्स-ए-मख़दूम में लाया जिन्हें दाना पानीतू गले मिल के बजा मुजरई बहर-ए-करम
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
When Acharya Ramchandra Shukla met Surdas ji (भक्त सूरदास जी से आचार्य शुक्ल की भेंट) - डॉ. विश्वनाथ मिश्र
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत शाह-ए-दौला साहब-मोहम्मदुद्दीन फ़ौक़
मियाँ दौलाः-पुराने ज़माने में दस्तूर था और बा’ज़ देहात और गाँव में अब तक भी ये
सूफ़ी
सूफ़ी लेख
पदमावत के कुछ विशेष स्थल- श्री वासुदेवशरण
करना=उसी प्रकार का दूसरा बाजा, जिसमें चार एक साथ बजाए जाते हैं। अबुल फजल ने अकबर
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
“मन अंदर बयान-ए-ईं (ईमान)किताबे कर्दः जुदागानः”|लेकिन उन किताबों में से अब किसी का भी पता नहीं
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
उमर ख़ैयाम श्रीयुत इक़बाल वर्मा, सेहर
सवेरे का समय है। ऐ! आनबान वाले उठ। धीरे धीरे मदिरा पी और चंग बजा। इसलिये