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सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी क़व्वाली के विभिन्न प्रकार
ग़रीब-परवर-ओ-मुश्किल-कुशा की चादर हैमिलेगा हुस्न का सदक़ा ग़रीब ‘बेदम’ को
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
बेदम शाह वारसी और उनका कलाम
मिलेगा हुस्न का सदक़: ग़रीब बेदम कोजमील-ए-हुस्न-ओ-जमाल-ए-ख़ुदा की चादर है
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
जिन लोगों का ऐसा विचार है कि परलोक में फिर यही शरीर सचेत हो जाता है,
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
ख़्वाजा मीर दर्द और उनका जीवन
(नबी की औलाद जो उनके तरीक़े पर न हो वो कलामुल्लाह की मंसूख़ आयत की तरह
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
हज़रत सय्यिद अमजद अ’ली शाह ने अपने वालिद से तर्बीयत-ओ-ता’लीम हासिल करने के बा’द हज़रत मोहम्मद
फ़ैज़ अली शाह
सूफ़ी लेख
औघट शाह वारसी और उनका कलाम
औघट शाह वारसी साहब अपने पिता के आदेश पर क़रीब बारह वर्षों तक भ्रमण करते रहे
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
जौनपुर की सूफ़ी परंपरा
एक बार शैख़ हुसैन गुजराती नामक एक सूफ़ी मुहम्मद ई’सा जौनपुरी से मिलने जौनपुर तशरीफ़ लाए.
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
जिन नैनन में पी बसे दूजा कौन समाय
“उस सुबह हज़रत का आदेश हुआ कि मैं ख्व़ाजा हसन सिजज़ी की छावनी छोड़ दूँ जहाँ
सुमन मिश्रा
सूफ़ी लेख
हज़रत मख़दूम अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी के जलीलुल-क़द्र ख़ुलफ़ा - सय्यद मौसूफ़ अशरफ़ अशरफ़ी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
बा’ज़ लोगों की ये भी तज्वीज़ है कि अगर उर्दू की क़ित़ाएं उर्दू रस्म-उल-ख़त के अ’लावा
मुनादी
सूफ़ी लेख
जायसी का जीवन-वृत्त- श्री चंद्रबली पांडेय एम. ए., काशी
दुऔ अचल धुव डोलहिं नाहीं। मेरु खिखिंद तिन्हहुँ उपराहीं।।जिसका कारण यह है कि जायसी अपने पीरवंश
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
मुनादी
सूफ़ी लेख
अमीर खुसरो- पद्मसिंह शर्मा
साहित्य-संसार में इस से अधिक विनय और सत्यशीलता का उदाहरण कम मिलेगा! आज संसार जिसे उस्ताद-ए-कामिल
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
जाहरपीरः गुरु गुग्गा, डा. सत्येन्द्र - Ank-2,1956
इस वर्णन में और चीजों के साथ लोम हत्थ का उल्लेख है। कुमार स्वामी महोदय ने
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
इस खेल ही खेल में इतनी बड़ी बात पैदा हो गई है, जिसे प्रेम कहते हैं।