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सूफ़ी लेख
बक़ा-ए-इंसानियत के सिलसिला में सूफ़िया का तरीक़ा-ए-कार- मौलाना जलालुद्दीन अ’ब्दुल मतीन फ़िरंगी महल्ली
मेहरबानी आपकी ना-मेहरबानी आपकी’“हर ज़माँ मी-रवम-ओ-हर लहज़ा शवम ज़िंदा ब-जाँ
मुनादी
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तान में क़ौमी यक-जेहती की रिवायात-आ’ली- बिशम्भर नाथ पाण्डेय
दूसरे दिन ही मैं ने उन्हें ख़त लिखा और उनसे इल्तिजा की कि मेहरबानी फ़रमाकर मुझे
मुनादी
सूफ़ी लेख
समाअ और क़व्वाली का मक़सद-ए-ईजाद अलग अलग
‘इबादत दो क़िस्म की है।एक वो जिसका फ़ाइदा सिर्फ़ इबादत करने वाले को होता है, जैसे
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
गुरु बाबा नानक जी - अ’ल्लामा सर अ’ब्दुल क़ादिर
इसी रिवायत में जैसे एक बड़ा सबक़ हिंदुओं के लिए है उसी तरह एक और रिवायत
मुनादी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
(10) फ़िरक़ा-ए-सय्यारियाः ये फ़िर्क़ा अबू अ’ब्बास सय्यारी की जानिब मंसूब है, जो मर्व के इमाम थे।उनकी
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
क़व्वाली के अव्वलीन सरपरस्त हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया
“ऐ उस्मान अब जब कि तुमने ख़िर्क़ा-ए-दरवेशी ज़ेब-तन कर लिया है तो तुमको चाहिए कि इन
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत मख़दूम हुसैन ढकरपोश
मूनिसुल-क़ुलूब के जामे’ क़ाज़ी शह बिन ख़त्ताब बिहारी फ़रमाते हैं कि एक मर्तबा हज़रत शैख़ अहमद
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
ख़ुद लिखते हैं ”जब चार साल की उ’म्र हुई तो मेरे हक़ीक़ी मामूँ क़ाज़ी अहमद बख़्श