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Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
रहबर-ए-इंस-ओ-जाँ ज़े-रु-ए-यक़ीनपेशवा-ए-जहाँ समाउद्दीन
सुमन मिश्रा
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हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
मेरा क्या मुँह है कि उस सरकार में जाऊँ मगरतेरे जैसा मिल गया तक़्दीर से रहबर मुझे
सूफ़ीनामा आर्काइव
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समकालीन खाद्य संकट और ख़ानक़ाही रिवायात
आज दुनिया संगीन क़िस्म के ग़िज़ाई बोहरान से नबर्द-आज़मा है, जदीद टेक्नॉलोजी के दौर में तरक़्क़ियाती
रहबर मिस्बाही
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शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
एक मुहक़्क़िक़ हक़ायक़ को बे-नक़ाब करता है, एक रहबर उस को सरीउ’ल-फ़ह्म बनाता और अवाम तक
मयकश अकबराबादी
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चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
कि उनकी फ़य्याज़ियाँ और करम-गुस्तरियाँ अपने और पराए का फ़र्क़ नहीं करतीं और हर कस-ओ-ना-कस के
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
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पीर-ए-दस्त-गीर हज़रत अब्दुल क़ादिर की करामतों का बयान
नक़्ल है कि एक ’औरत ग़ौस-उल-आ’ज़म से मोहब्बत रखती थी और हर वक़्त ख़िदमत-ए-अक़्दस में हाज़िर
हसरत अजमेरी
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सुलूक-ए-नक़्शबंदिया - नासिर नज़ीर फ़िराक़ चिश्ती देहलवी
पीर की सूरत याद रखने को कहते हैं जो दिल में होता है। हज़रत ख़्वाजा उ’बैदुल्लाह
निज़ाम उल मशायख़
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तज़्किरा हज़रत शाह तसद्दुक़ अ’ली असद
ऐ बाबा! मैं किस क़ाबिल हूँ मैं तो दरवेश नहीं हूँ बल्कि दरवेशों का नाक़िल हूँ,