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सूफ़ी लेख
महफ़िल-ए-समाअ’ और सिलसिला-ए-वारसिया
अ’रबी ज़बान का एक लफ़्ज़ ‘क़ौल’ है जिसके मा’नी हैं बयान, गुफ़्तुगू और बात कहना वग़ैरा।आ’म
डॉ. कबीर वारसी
सूफ़ी लेख
हिन्दुस्तानी मौसीक़ी और अमीर ख़ुसरौ
इंसानी जज़्बात के इज़हार के लिए इंसान ने जिन फ़ुनून को वज़ा’ किया है उनमें से
उमैर हुसामी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
दादू के सिद्धांतानुसार ब्रह्म निर्गुण व निराकार है। वह जगत का स्रष्टा है और उस का
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
बरवा राग में लय भी इन्होंने रखी है। यह गीत तो युवा स्त्रियों के लिए बनाया
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
बरवा राग में लय भी इन्होंने रखी है। यह गीत तो युवा स्त्रियों के लिए बनाया
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
क़व्वाली एक ताल का नाम भी
समा’अ में अगर नग़्मा की बा-ज़ाबतगी हो तो वो समा’अ से ख़ारिज हो जाता है। नग़्मा
अकमल हैदराबादी
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संत साहित्य
दादू के सिद्धांतानुसार ब्रह्म निर्गुण व निराकार है। वह जगत का स्रष्टा है और उस का
परशुराम चतुर्वेदी
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संत कबीर की सगुण भक्ति का स्वरूप- गोवर्धननाथ शुक्ल
परहित द्रवै सो संत पुनीता।अतः संत का लक्षण विश्वकरुणा अथवा भूतदया से अभिभूत होना है, न
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
याद रखना फ़साना हैं ये लोग - डॉक्टर ज़ाकिर हुसैन ख़ाँ
हम आवाज़-ए-जरस की तर्ह से तन्हा भटकते हैं।।एक और चीज़ जिसने ज़फ़र को मक़्बूल-ओ-महबूब बनाया वो
मुनादी
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
यह तो आरम्भ में ही कहा जा चुका है कि सूर की रचना जयदेव और विद्यापति
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
मदन साहब ने माया की उपमा एक ऐसी नाउन से दी है जो वेश परिवर्तन कर
हिंदुस्तानी पत्रिका
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बिहार में क़व्वालों का इतिहास
क़व्वालों के कुछ जत्थे नवादा बिहार, फुलवारी और सासाराम में हैं, कुछ इलाहाबाद में हैं कुछ
रय्यान अबुलउलाई
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क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
फ़न्न-ए-मौसीक़ी या राग बजाए ख़ुद निहायत दिलचस्प फ़न है। आवाज़ की मुख़्तलिफ़ बुलंदियों को सात मदारिज
सूफ़ीनामा आर्काइव
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क़व्वाली के अव्वलीन सरपरस्त हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया
अमीर ख़ुसरो एक बा-कमाल मौसीक़ी-दाँ थे, लिहाज़ा आपकी ईजाद कर्दा क़व्वाली में समाअ से इतना तो
अकमल हैदराबादी
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कन्नड़ का भक्ति साहित्य- श्री रङ्गनाथ दिवाकर
हमारे पूर्वज केवल अपने ध्यय की घोषणा करके चुप नहीं बैठे। उन्होंने इस ध्याय की प्राप्ति
भारतीय साहित्य पत्रिका
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तज़्किरा यूसुफ़ आज़ाद क़व्वाल
इस्माई’ल आज़ाद के हम-अ’स्रों में सबसे ज़्यादा शोहरत यूसुफ़ आज़ाद को नसीब हुई। यूसुफ़ एक इंतिहाई