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सूफ़ी लेख
आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
बा’ज़ हुकमा का क़ौल है कि दिल के अंदर एक ऐसी शरीफ़ फ़ज़ीलत है जिसको नुत्क़
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ जमालुद्दीन कोल्हवी
जिधर से अब्र उठता है सू-ए-मय-ख़ाना आता हैसाढे़ तीन महीना में इ’लाज के मदारिज तय हो
निज़ाम उल मशायख़
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ईद वाले ईद करें और दीद वाले दीद करें
ईद का शाब्दिक अर्थ सूफ़ी किताबों में कुछ यूँ मिलता है- (मुसलमानों के त्यौहार का दिन;
सुमन मिश्रा
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हज़रत शैख़ बहाउद्दीन ज़करिया सुहरावर्दी रहमतुल्लाह अ’लैह
समाअ’ से भी कभी कभी शुग़्ल फ़रमाते थे।एक मर्तबा अ’ब्दुल्लाह रूमी क़व्वाल मुल्तान वारिद हुआ और
सूफ़ीनामा आर्काइव
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अबू मुग़ीस हुसैन इब्न-ए-मन्सूर हल्लाज - मैकश अकबराबादी
अंदाज़-ए-बयान पर कोई ए’तराज़ नहीं किया जा सकता लेकिन उनमें से कोई चीज़ न सिर्फ़ तसव्वुफ़
मयकश अकबराबादी
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हज़रत सयय्द अशरफ़ जहाँगीर सिमनानी का पंडोह शरीफ़ से किछौछा शरीफ़ तक का सफ़र-अ’ली अशरफ़ चापदानवी
जन्नताबाद (पंडोह) का सफ़रः-वहाँ कुछ दिन क़ियाम फ़रमाया और मख़दूम जहानियाँ जहाँ गश्त से इजाज़त ले
सूफ़ीनामा आर्काइव
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ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ - अबुल-आज़ाद ख़लीक़ी देहलवी
मसऊ’द था वो वक़्त जब ख़्वाजा ने हिन्दुस्तान में क़दम-ए-हुमायूँ रखा और मुबारक थी वो घड़ी
निज़ाम उल मशायख़
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हज़रत शाह नियाज़ बरेलवी की शाइरी में इरफान-ए-हक़
इर्फ़ान-ए-हक़ या ‘‘ख़ुदी की तश्ख़ीस’’ के ज़ैल में अह्ल-ए-इल्म ने सफ़हात दर सफ़हात सियाह किए हैं,