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सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
मरा दर निज़ामिया ऊ रा बूदशब-ओ-रोज़ दर बहस-ओ-तकरार बूद
एजाज़ हुसैन ख़ान
सूफ़ी लेख
चिश्तिया सिलसिला की ता’लीम और उसकी तर्वीज-ओ-इशाअ’त में हज़रत गेसू दराज़ का हिस्सा
ख़लीक़ अहमद निज़ामी
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो की सूफ़ियाना शाइ’री - डॉक्टर सफ़्दर अ’ली बेग
“ख़ुदाया मैंने तेरी तमन्ना में सब कुछ तज दिया है और मुझे बस अब तेरी ही
फ़रोग़-ए-उर्दू
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हज़रत ख़्वाजा नूर मोहम्मद महारवी - प्रोफ़ेसर इफ़्तिख़ार अहमद चिश्ती सुलैमानी
हज़रत मौलाना साहिब पाक-पत्तन शरीफ़ पहुंचे तो दीवान साहिब हज़रत ख़्वाजा मोहम्मद यूसुफ़ साहिब ने जो
मुनादी
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा अमजद हुसैन नक़्शबंदी
हिन्दुस्तान में ख़ानक़ाहें और बारगाहें कसरत से वजूद में आईं जहाँ शब ओ रोज़ बंदगान ए
रय्यान अबुलउलाई
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ज़िक्र-ए-ख़ैर : ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
ख़ुलासा-ए-कलाम ये कि आपकी ज़ात जामे’–ए-कमालात सुवरी-ओ-मा’नवी थी। या यूँ कहें कि इस पर्दा के पीछे
रय्यान अबुलउलाई
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क़व्वाली की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा
किसी फ़न की ईजाद-ओ-इर्तिक़ा के बारे में क़लम उठाना उस वक़्त आसान होता है जबकि हम
अकमल हैदराबादी
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हज़रत गेसू दराज़ का मस्लक-ए-इ’श्क़-ओ-मोहब्बत - तय्यब अंसारी
हज़रत अबू-बकर सिद्दीक़ रज़ी-अल्लाहु अ’न्हु ने फ़रमाया था:परवाने को चराग़ है, बुलबुल को फूल बस
मुनादी
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क़व्वाली के क़दीम-ओ-जदीद मुक़ाबले
क़व्वाली के मुक़ाबलों : क़व्वाली के फ़नकारों में मुक़ाबलों का रिवाज बहुत पुराना है लेकिन ज़माना-ए-क़दीम
अकमल हैदराबादी
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तज़्किरा शंकर-ओ-शंभू क़व्वाल
क़व्वाली का फ़न किसी मज़हब की मीरास नहीं। हर मज़हब के लोग न सिर्फ़ इस फ़न
अकमल हैदराबादी
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समा के आदाब-ओ-मवाने से का इनहराफ़
हज़रत जुनैद बग़्दादी के समा’अ से आख़िरी उम्र में किनारा-कशी इख़्तियार कर लेने के बा’द समा’अ