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सूफ़ी लेख
हज़रत शाह नियाज़ बरेलवी की शाइरी में इरफान-ए-हक़
अगर दानी कि हर शय हस्त ला-शयब-दाँ कि हर मकाँ हम ला-मकाँ अस्त
अहमद फ़ाख़िर
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ बू-अ’ली शाह क़लंदर
चश्म बायद ता-ब-बीनद रू-ए-यारजल्वाए कर्दस्त दर हर शय निगार
सूफ़ीनामा आर्काइव
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शाह अकबर दानापुरी और “हुनर-नामा”
नौकरी से नहीं दुनियामें कोई शय बद-तरकफ़श-दोज़ी का भी उससे बहुत अच्छा है हुनर
रय्यान अबुलउलाई
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सय्यद शाह शैख़ अ’ली साँगड़े सुल्तान-ओ-मुश्किल-आसाँ - मोहम्मद अहमद मुहीउद्दीन सई’द सरवरी
सूफ़ीनामा आर्काइव
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हज़रत शरफ़ुद्दीन अहमद मनेरी रहमतुल्लाह अ’लैह
वस्लः-हक़ तआ’ला से वस्ल के मा’नी उससे मिलना और पैवस्ता होना है।मगर ये मिलना ऐसा नहीं
सूफ़ीनामा आर्काइव
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अस्मारुल-असरार - डॉक्टर तनवीर अहमद अ’ल्वी
एक समर में शिर्क को भी दो क़िस्मों में बाँटा है जली और ख़फ़ी। शिर्क-ए-जली ये
सूफ़ीनामा आर्काइव
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सुलूक-ए-नक़्शबंदिया - नासिर नज़ीर फ़िराक़ चिश्ती देहलवी
उस बक़ा को कहते हैं जो अपनी फ़ना पर क़ाइम होती है और चूँकि ये फ़ना
निज़ाम उल मशायख़
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हज़रत शाह वजीहुद्दीन अलवी गुजराती
अब अस्ल मस्अला समझने से पहले चंद बातें ज़ेहन-नशीन हो जाएं तो समझने में आसानी होगी।
मआरिफ़
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क़व्वाली और अमीर ख़ुसरो – अहमद हुसैन ख़ान
जैसा की हम ने क़ब्ल बताया है कि अख़्लाक़ियात की बुनियाद ख़ैर, हुस्न और सिद्क़ पर
सूफ़ीनामा आर्काइव
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तजल्लियात-ए-सज्जादिया
जैसा कि किताबों में आया है कि जब हज़रत शाह अकबर दानापुरी इस ख़ाकदान-ए-गेती पर जल्वा-अफ़रोज़
अहमद रज़ा अशरफ़ी
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हज़रत शैख़ अबुल हसन अ’ली हुज्वेरी रहमतुल्लाह अ’लैहि
छट्ठा हिजाब ज़कात है, जो ईमान का जुज़्व है।इस से रु-गर्दानी जाइज़ नहीं।सालिक को ज़कात में
सूफ़ीनामा आर्काइव
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आदाब-ए-समाअ’ पर एक नज़र - मैकश अकबराबादी
आदाब, हिल्लत-ओ-हुर्मत के अ’लावा एक दीगर शय है। ये बात नहीं है कि अगर मुक़र्ररा आदाब