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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
सहम गई नहि सकी पुकार। ऐ सखी साजन ना सखी बुखार।।(149) आँख चलावे भौं मटकावे। नाच कूद के खेल खिलावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
सहम गई नहि सकी पुकार। ऐ सखी साजन ना सखी बुखार।। (149) आँख चलावे भौं मटकावे। नाच कूद के खेल खिलावे।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
चरणदासी सम्प्रदाय का अज्ञात हिन्दी साहित्य - मुनि कान्तिसागर - Ank-1, 1956
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
क़व्वाली और फ़िल्म
इस पर भी मुहब्बत छुप न सकी जब तेरा किसी ने नाम लियाइस क़व्वाली को अपने
अकमल हैदराबादी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत हसन जान अबुल उलाई
हसन जान की शाइ’री को वो शोहरत न मिल सकी जो दूसरे बड़े शो’रा को हासिल
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
सूर की कविता का आकर्षण, डॉक्टर प्रभाकर माचवे
आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने कहा है- “सूर का संयोग-वर्णन एक क्षणिक घटना नहीं है, प्रेम-संगीतमय जीवन
सूरदास : विविध संदर्भों में
सूफ़ी लेख
कबीर द्वारा प्रयुक्त कुछ गूढ़ तथा अप्रचलित शब्द पारसनाथ तिवारी
पद वही, - 5, गजै न मिनिऐ तोलि न तुलिऐ। पहजन सेर अढ़ाई। गजै न मिनिऐ
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
दक्खिनी हिन्दी के सूरदास-सैयद मीरां हाशमी- डॉ. रहमतउल्लाह
(4) रेख्ती कविताएँ- हाशमी को दक्खिनी कवियों में रेख्ती कविता का जनक बताया जाता है। किन्त
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो बुज़ुर्ग और दरवेश की हैसियत से - मौलाना अ’ब्दुल माजिद दरियाबादी
मातमी लिबास पहन लिया।सब कुछ लुटा दिया।ख़ाली हाथ हो बैठे ग़म की आग में जलते,हिज्र की
फ़रोग़-ए-उर्दू
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कबीरपंथी और दरियापंथी साहित्य में माया की परिकल्पना - सुरेशचंद्र मिश्र
कबीरपंथ की मान्यतानुसार माया का प्रभाव अखिल विश्व पर है। ज्ञानप्रकाश में ऐसा उल्लेख है कि