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सूफ़ी लेख
Jamaali – The second Khusrau of Delhi (जमाली – दिल्ली का दूसरा ख़ुसरो)
ब-पेशत अर्ज़ दादन नीस्त राज़ी(तुम्हें नहीं मालूम कि मैं चाँद हूँ और तू आफ़ताब . बग़ैर
सुमन मिश्रा
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तज़्किरा-ए-फ़ख़्र-ए-जहाँ देहलवी
(वरक़24 ब)सन 4 जलूस-ए-अहमद शाही में बुध के बा’द और जुमे’रात की सुब्ह को बेदारी की
निसार अहमद फ़ारूक़ी
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अमीर ख़ुसरो की सूफ़ियाना शाइ’री - डॉक्टर सफ़्दर अ’ली बेग
काएनात का हुस्न हर फ़र्द-ए-बशर को मस्हूर कर लेता है और उसका दिल मोह लेता है
फ़रोग़-ए-उर्दू
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हज़रत शैख़ जलालुद्दीन तबरेज़ी
ता’लीमात: ’आलिमों की नमाज़ और होती है और फ़क़िरों की और ।...’उलमा की नमाज़ इस तरह
डाॅ. ज़ुहूरुल हसन शारिब
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ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ - अबुल-आज़ाद ख़लीक़ी देहलवी
ये किसी तअ’स्सुब की राह से नहीं बल्कि हक़्क़ुल-अम्र और कहने की बात है कि हिन्दुस्तान
निज़ाम उल मशायख़
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Sheikh Naseeruddin Chiragh-e-Dehli
हज़रत निज़ामुद्दीन औलिया पहली मंज़िल पर स्थित अपनी आरामगाह से बाहर निकले और सीढ़ियाँ उतरते हुये
सुमन मिश्रा
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जिन नैनन में पी बसे दूजा कौन समाय
हज़रत ने फरमाया- तुम अभी जवान हो। तुम्हें हमेशा अपने आप को गर्व और मिथ्याभिमान से
सुमन मिश्रा
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ख़्वाजा मीर दर्द और उनका जीवन
सूफ़ी विचारधारा में तवक्कुल (ईश्वर पर निर्भरता) का विशेष महत्व है। अपनी ओर से कोई साधन