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सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुनएमी
क़ातिल बना है आप और मक़्तूल है वहीमंसूर बन के आपको सूली चढ़ा गया
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(101) सूली चढ़ मुसकत करे, स्याम बरन एक नार।दो से दस से बीस से, मिलत एकही बार।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(101)सूली चढ़ मुसकत करे, स्याम बरन एक नार। दो से दस से बीस से, मिलत एकही बार।।
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मंसूर हल्लाज
क़ैद-ख़ाने में उनसे बहुत सी करामातें ज़ाहिर हुईं जिनमें सबसे आख़िरी करामत ये थी कि एक
निज़ाम उल मशायख़
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पीर-ए-दस्त-गीर हज़रत अब्दुल क़ादिर की करामतों का बयान
नक़्ल है जब ख़्वाजा ग़रीब नवाज़ अपने पीर-ओ- मुर्शिद के हमराह मक्का मुकर्रमा में पहुँचे आपके