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सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
ता अला की गति नहीं जानी, गुरि गुड़ दीया मीठा, कहै कबीर मैं पूरा पाया, सब घटि साहिब दीठा।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(118) आदि कटे से सब को पाले। मध्य कटे से सब को मारे।।अंत कटे से सबको मीठा। खुसरू वाको आँखों दीठा।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(118) आदि कटे से सब को पाले। मध्य कटे से सब को मारे।। अंत कटे से सबको मीठा। खुसरू वाको आँखों दीठा।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
सतगुरू नानक साहिब
“मेंढ़क कंवल के पास ही रहता है लेकिन हक़ीक़त में हज़ारों कोस दूर है क्यूँकि कंवल
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
गुरु बाबा नानक जी - अ’ल्लामा सर अ’ब्दुल क़ादिर
“रहम को मस्जिद बना ईमान और सच्चाई की जा-नमाज़ ले,इंसाफ़ को अपनी मुक़द्दस किताब समझ,मीठा चलन