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शह-ए-ख़ूबान-ए-मन रंगीं-क़बा नाज़ुक-अदा दारदब-हर ग़म्ज़: ब-हर इ'श्वः जहाने मुब्तला दारद
अ'ली हुसैन अशरफ़ी
शे'र
दवाँ हो कश्ती-ए-उ’म्र-ए-रवाँ यूँ बहर-ए-हस्ती मेंकहीं उभरी कहीं डूबी कहीं मा’लूम होती है
अफ़क़र मोहानी
शे'र
ख़ून-ए-नाहक़ की शहादत के लिए काफ़ी है येदामन-ए-क़ातिल पे जो धब्बे लहू के जम रहे
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
क्यों गुल-ए-आरिज़ पे तुमने ज़ुल्फ़ बिखराई नहींचश्मा-ए-ख़ुर्शीद में क्यों साँप लहराया नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
चश्म नर्गिस बन गई है इश्तियाक़-ए-दीद मेंकौन कहता है कि गुलशन में तिरा चर्चा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
हश्र के दिन इम्तिहाँ पेश-ए-ख़ुदा दोनों का हैलुत्फ़ है उनकी जफ़ा मेरी वफ़ा से कम रहे
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
कूचा-ए-क़ातिल में जाकर हाथ से रक्खें तुझेओ दिल-ए-बेताब हमने इसलिए पाला नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
वक़्त-ए-आराईश जो की आईना पर उसने नज़रहुस्न ख़ुद कहने लगा इस से हसीं देखा नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
वह्म है शक है गुमाँ है बाल से बारीक हैइस से बेहतर और मज़मून-ए-कमर मिलता नहीं
मिरर्ज़ा फ़िदा अली शाह मनन
शे'र
सामने मेरे ही वो जाते हैं बज़्म-ए-ग़ैर मेंअल-मदद ऐ ज़ब्त मुझ को कब तक उस का ग़म रहे