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कलाम
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगीज़िंदगी मानिंद-ए-शम्अ' मुख़्तसर होने लगी
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
सहर उस हुस्न के ख़ुर्शीद को जाकर जगा देखाज़ुहूर-ए-हक़ कूँ देखा ख़ूब देखा बा-ज़िया देखा
मिर्ज़ा मज़हर जान-ए-जानाँ
कलाम
लहराती है जब ज़ुल्फ़-ए-जानाँ बादल को पसीना आता हैमा'लूम ये होता है जैसे सावन का महीना आता है