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कलाम
रब्त बाक़ी रहे महबूब-ओ-मुहिब्ब में हरदमहम सितम-कश रहें और वो सितम-ईजाद रहे
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
हम तुम ही बस आगाह हैं इस रब्त-ए-ख़फ़ी सेमा'लूम किसी और को ये राज़ नहीं है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
मैं ग़ैर नहीं ऐ जाँ क्यूँ होते हो तुम अनजाँमुझ से तो हमेशा से है रब्त-ओ-शनासाई
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
कलाम
सौ ’इज़्ज़तों की 'इज़्ज़त इक उन से रब्त-ओ-निस्बतसब कुछ यही है वर्ना क्या तीर हम ने मारा
कामिल शत्तारी
कलाम
जुनूँ से रब्त-ए-रूहानी है दामान-ओ-गरेबाँ कोकि मैं हर तार में महसूस करता हूँ रग-ए-जाँ को
सीमाब अकबराबादी
कलाम
वो भी आजिज़ हो गए मुश्किल है जिन का रब्त-ओ-ज़ब्तहाफ़िज़-ओ-मुल्ला यहाँ पर कब दलील-ए-राह हो