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कलाम
रहता हूँ बे-लब-ओ-दहन रोज़-ओ-शब उन से हम-सुख़नजान-ए-सुख़न है ऐ 'हसन' ये मिरी ख़ामुशी नहीं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
शब-ए-फ़ुर्क़त की तारीकी में शामिल है ग़ुबार अपनाउसी सहरा में खोया 'इश्क़ ने 'अह्द-ए-बहार अपना
मयकश अकबराबादी
कलाम
अव्वल-ए-शब वो बज़्म की रौनक़ शम्अ' भी थी परवाना भीरात के आख़िर होते होते ख़त्म था ये अफ़्साना भी