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कलाम
दिल दिलीर करे अचु आशिक, सुस्त यकीन न थीउ तू।टोड़े शक गुमान सभेई, प्रेमी प्यालो पीउ तू।
सचल सरमस्त
कलाम
नसीब-ए-ज़ाइराँ बे-शक करामात-ओ-बुजु़र्गी हैहमेशा से शर्फ़ पाते रहे अस्लाफ़ का'बा में
हाजी वारिस अली शाह
कलाम
मैं देखा शान अहमद की बिला-शक मेरे मुर्शिद मेंमेरा ईमान-ए-कामिल बन गया मुर्शिद की सूरत में
गुलाम रसूल नाइब
कलाम
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
विलायत में तो हज़रत के नहीं है मुझ को शक हरगिज़व-लेकिन नाज़ अज़ बस था जनाब-ए-शैख़-ए-सनआँ में