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कलाम
माहिरउल क़ादरी
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दास्ताँ इ'श्क़-ओ-मोहब्बत की किताबों में नहींजो नश्शा आँख में तेरी है शराबों में नहीं
अब्दुल हादी काविश
कलाम
इकट्ठे हो के हुस्न-ओ-'इश्क़ मेरे दिल में रहते हैंयहाँ लैला-ओ-मजनूँ एक ही महमिल में रहते हैं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
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बाक़िर शाहजहांपुरी
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पुरनम इलाहाबादी
कलाम
वही कुछ हुस्न के जल्वों का पूरा लुत्फ़ पाते हैंजो अपने दिल को ख़ुद इक मुस्तक़िल का'बा बनाते हैं
कामिल शत्तारी
कलाम
हुस्न की ख़्वाबीदा महफ़िल को जगा देता हूँ मैंकिस बुलंदी से ख़ुदा जाने सदा देता हूँ मैं
माहिरउल क़ादरी
कलाम
फ़ना होना मोहब्बत में हयात-ए-जावेदानी हैकिसी क़ातिल पे दम निकले तो लुत्फ़-ए-ज़िंदगानी है