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आज फिर तक़दीर चमकी तालिब-ए-दीदार कीफिर हुईं पुर-नूर आँखें रौज़न-ए-दीवार की
सज्दा मेरा वहाँ अदा न हुआजिस जगह तेरा नक़्श-ए-पा न हुआ
पामाल-ए-रह-गुज़र हूँ तुझे कुछ ख़बर भी हैओ मस्त-ए-नाज़! देख यहाँ मेरा सर भी है
नज़र वो होके तिरा हुस्न रू-ब-रू आएजिधर भी देखो नज़र सिर्फ़ तू ही तू आए
मैं वहदत का पर्दा हूँ अल-हम्दु-लिल्लाहअहद का ख़ुलासा हूँ अल-हम्दु-लिल्लाह
फ़क़ीराना आए सदा कर चलेमियाँ ख़ुश रहो हम दुआ' कर चले
फिर क्या ग़रज़ 'असद' को दैर-ओ-हरम से शाहाजब है वुजूद उस का बरतर निशान तेरा
अब तो सबा चमन से आती नहीं इधर कुछहम तक नहीं पहुँचती गुल की ख़बर 'इत्र कुछ
तुंद मय और ऐसे कम-सिन के लिएसाक़िया हल्की सी ला इन के लिए
मर रहते जो गुल बिन तो सारा ये ख़लल जातानिकला ही न जी वर्ना काँटा सा निकल जाता
था मुस्त’आर-ए-हुस्न से उस के जो नूर थाख़ुर्शीद में भी उस ही का ज़र्रा ज़ुहूर था
'अली इमाम-ए-मनस्त-ओ-मनम ग़ुलाम-ए-'अलीहज़ार जान-ए-गिरामी फ़िदा-ए-नाम-ए-'अली
पहलू में दिल तपाँ नहीं हैहर चंद कि याँ है याँ नहीं है
'अली इमाम-ए-मन-अस्त-ओ-मनम ग़ुलाम-ए-’अलीहज़ार जान गिरामी फ़िदा ब-नाम-ए-'अली
अगर यूँ ही ये दिल सताता रहेगातो इक दिन मिरा जी ही जाता रहेगा
हम ने किस रात नाला सर न कियापर उसे आह कुछ असर न किया
जान पे खेला हूँ मैं मेरा जिगर देखनाजी न रहे या रहे मुझ को इधर देखना
यारो मिरा शिकवा ही भला कीजिए उस सेमज़कूर किसी तरह तो जाके कीजिए उस से
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