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ख़ुद बर्क़ हो और तूर-ए-तजल्ला से गुज़र जाख़ुद शो'ला बन और वादी-ए-सीना से गुज़र जा
बर्क़ चमकी चमन वाले दुश्मन हुए चार तिनके बुझाना ग़ज़ब हो गयाचंद फूलों में ऐ हम-नशीनो मिरा आशियाना बनाना ग़ज़ब हो गया
क़द्र-दान-ए-जौहर-ए-इंसानियत हूँ ‘बर्क़’ मैंमेरी नज़रों में मता’-ए-दहर की वक़'अत नहीं
तुझे इस रंग में क्या बर्क़-ए-तजल्ला देखेंतूर पर आग लगे लोग तमाशा देखें
रश्क-ए-बर्क़-ए-तूर शम्-ए’-महफ़िल-ए-जानाना हैमाह-ए-नौ टूटा हुआ इस बज़्म का पैमाना है
सँभल कर देखना बर्क़-ए-तजल्ला देखने वालेतमाशा ख़ुद न बन जाना तमाशा देखने वाले
दो-'आलम में नज़र आता है जल्वा सर-ब-सर अपनातमाशा देखता है आप हुस्न-ए-ख़ुद-निगर अपना
बारकल्लाह आप ने कार-ए-नुमायाँ कर दियाइक नज़र में बे-नियाज़-ए-कुफ़्र-ओ-ईमाँ कर दिया
बर्क़ अगर गर्मी-ए-रफ़्तार में अच्छी है 'अमीर'गर्मी-ए-हुस्न में वो बर्क़-जमाल अच्छा है
सुर्मगीं आँखें बर्क़-ए-तजल्लातूर हुआ कब हामिल-ए-जल्वा
बर्क़ तिनके वही जलाती हैजो नशेमन की जान होते हैं
यूँ न हो बर्क़-ए-तजल्ली बेताबमिल गया रँग तमाशाई का
तेरी फ़ुर्सत के मुक़ाबिल ऐ उम्रबर्क़ को पा-ब-हिना बाँधते हैं
तो बर्क़ अपनी बे-ताबियाँ भूल जाएअगर देख ले तिलमिलाना किसी का
बर्क़ सौ बार गिर के ख़ाक हुईरौनक़-ए-ख़ाक-ए-आशियाँ है वही
निगाह बर्क़ नहीं चेहरा आफ़ताब नहींवो आदमी है मगर देखने की ताब नहीं
वही चराग़ वही गुल वही क़मर वही बर्क़नए लिबास में देखा उसे जहाँ देखा
दौड़ कर बर्क़-ए-तजल्ली ने सँभाला उस कोलड़खड़ाया जो क़दम तेरे तमाशाई का
शो'ला-ए-बर्क़-ए-तपाँ साया-ए-अब्र-ए-रहमतलुत्फ़-बरदोश तुहि क़हर-बदामाँ तूही
अश्कों पे गिराते मिरे तुम बर्क़-ए-तबस्सुमपानी में ज़रा आग लगाते हुए आते
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