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कलाम
मद्रसे में आशिक़ों के जिस की बिस्मिल्लाह होउस का पहला ही सबक़ यारो फ़ना फ़िल्लाह हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
तुम्हारे 'इश्क़ में गर जान के देने से मैं अड़ताकोई दिन जी के आख़िर मौत से मरना ही फिर पड़ता
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
नहीं चलता है कुछ अपना तो तेरे इ'श्क़ के आगेहमारे दिल पे कोई और तो दर हो नहीं सकता
ख़्वाजा मीर दर्द
कलाम
ये हमीं थे जिन के लिबास पर सर-ए-रह सियाही लिखी गईयही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदमसर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
अफ़्साना मेरे दर्द का उस यार से कह दोफ़ुर्क़त की मुसीबत को दिल-आज़ार से कह दो