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कलाम
ये कैसे बाल बिखरे हैं बनी सूरत है क्यूँ ग़म कीख़बर पाई है बतलाओ तो किस दुश्मन के मातम की
एम. एस. जौहर
कलाम
मिल न मिल मुझ से मेरी सुन या न सुन बोल न बोलदिल में मेरे तू समाया तुझे मैं जानता हूँ
शाह ख़ामोश साबरी
कलाम
ज़रा दरस दिखा के बोल सजन तेरे बोल पे वारों सब तन-मनउसी आस में खोया सब जोबन और अपना बेगाना छोड़ दिया
अज्ञात
कलाम
जाँ-बाज़ है 'मज्ज़ूब' सुख़न-साज़ नहीं हैवो बोल रहे हैं मिरी आवाज़ नहीं है
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
कलाम
बारगाह-ए-हुस्न का 'काविश' यही दस्तूर हैचूम ले क़दमों को बढ़ कर और ज़बाँ से कुछ न बोल
अब्दुल हादी काविश
कलाम
देख कर रौज़ा-ए-अक़्दस को ये दिल बोल उठारू-कश-ए-बाग़-ए-इरम जो है वो रौज़ा है यही