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कलाम
शकील बदायूँनी
कलाम
हर इक ए'तिबार से आज तक हूँ फ़क़त फ़रेब-ए-ख़याल मेंमिरी ज़िंदगी का शुमार है न फ़िराक़ में न विसाल में
कामिल शत्तारी
कलाम
है दिल में ये हसरत ऐ जानाँ सीने पे इक ऐसा तीर चलाजो ज़ख़्म रहे ता-'उम्र हरा इक ऐसी जवानी माँगी थी
अज्ञात
कलाम
तुझे ढूँढती हैं नज़रें मुझे इक झलक दिखा जामिरी ज़िंदगी के मालिक मिरी ज़िंदगी में आ जा
फ़ना बुलंदशहरी
कलाम
दिल वारस्ता ही अपना अकेला रह गया आख़िरबहुत थे हम-सफ़र लेकिन हर इक पाबंद-ए-मंज़िल था