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'अमीर'-ए-साबरी जाना सँभल कर कू-ए-जानाँ मेंमोहब्बत इक अमानत है अलम-नश्रह न हो जाए
मेरे ज़ौक़-ए-सज्दा-ए-बंदगी को अ'ता हुई है ये बे-ख़ुदीतेरे संग-ए-दर पे पहुँचे भी तेरे संग-ए-दर की तलाश है
सब आफ़तों से छूट गया कर के तर्क-ए-हिर्सक्यूँ-कर न हो मुझे दिल-ए-बे-आरज़ू पसंद
तिरा क्या काम अब दिल में ग़म-ए-जानाना आता हैनिकल ऐ सब्र इस घर से कि साहिब-ख़ाना आता है
Jashn-e-Rekhta | 13-14-15 December 2024 - Jawaharlal Nehru Stadium , Gate No. 1, New Delhi
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