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कलाम
स्वामी रामतीर्थ
कलाम
खड़ा हूँ कब से मैं दर पर तिरे मुश्ताक़ दर्शन काइधर भी इक निगाह-ए-लुत्फ़ सदक़ा अपने जोबन का
क़ाज़ी उम्राओ अली जमाली
कलाम
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
ख़ुद फ़ना हो कर मैं करता हूँ ख़ुदाई का घमंडमुझ में कुछ बाक़ी नहीं है ख़ुद-नुमाई का घमंड
आशिक़ हैदराबादी
कलाम
अज़ीज़ुद्दीन रिज़वाँ क़ादरी
कलाम
ख़ुदी के साज़ में है उ'म्र-ए-जावेदाँ का सुराग़ख़ुदी के सोज़ से रौशन हैं उम्मतों के चराग़
अल्लामा इक़बाल
कलाम
ख़ुदी ख़ुद-बीनियों की हद में दाख़िल होती जाती हैख़ुदा की मा'रिफ़त कुछ और मुश्किल होती जाती है