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कलाम
दिखाई सूरत-ए-गुल पर बहार-ए-शोख़ी-ए-पिन्हाँछुपाया मा'नी-ए-गुल में कुछ हुस्न-ए-नुमायाँ को
असग़र गोंडवी
कलाम
चश्म-ए-मजनूँ के लिए दीदार-ए-लैला हर जगहवर्ना ग़ैरों के लिए सद पर्दा-ए-महमिल में है
ख़्वाजा हमीदुद्दीन अहमद
कलाम
आख़िर-ए-शब के हम-सफ़र 'फ़ैज़' न जाने क्या हुएरह गई किस जगह सबा सुब्ह किधर निकल गई
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
मद्रसे में आशिक़ों के जिस की बिस्मिल्लाह होउस का पहला ही सबक़ यारो फ़ना फ़िल्लाह हो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
दिल ओ जाँ फ़िदा-ए-राहे कभी आ के देख हमदमसर-ए-कू-ए-दिल-फ़िगाराँ शब-ए-आरज़ू का आलम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
ये संगीनी-ओ-सुबकी तेरी वा'इज़ सब पे खुल जातीतराज़ू-ए-मोहब्बत में अगर आ-कर के तू तुड़ता
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ये हमीं थे जिन के लिबास पर सर-ए-रह सियाही लिखी गईयही दाग़ थे जो सजा के हम सर-ए-बज़्म-ए-यार चले गए
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
मुश्किल जो 'नियाज़' आई तुम्हें फ़क़्र में दरपेशजा शाह-ए-नजफ़ हैदर-ए-कर्रार से कह दो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
काफ़िर-ए-’इश्क़ हूँ मैं बंदा-ए-इस्लाम नहींबुत-परस्ती के सिवा और मुझे काम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ानाकब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी