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कलाम
महफ़िल-ए-रिंदाँ में जाम मुल का होना चाहिएज़ोहद का क़ुल हो चुका क़ुलक़ुल का होना चाहिए
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
कलाम
खुल गए ज़ख़्मों के मुँह क्या जाने क्या कहने को हैंक्या नमक-दान-ए-सितम को बे-मज़ा कहने को हैं
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
कलाम
जिस के फँदे में फँसा है दिल हमारा आज-कलवो नज़र आता नहीं सय्याद प्यारा आज-कल
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
अपनी ग़ुर्बत से तिरी शान से डर लगता हैआप से हुस्न के सुल्तान से डर लगता है
ग़ुलाम मोईनुद्दीन गिलानी
कलाम
आरज़ू-ए-वस्ल-ए-जानाँ में सहर होने लगीज़िंदगी मानिंद-ए-शम्अ' मुख़्तसर होने लगी