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कलाम
शबीह-ए-’आशिक़-ए-मुज़्तर को देख ऐ कोह-ए-रा’नाईअगर मंज़ूर है तुझ को तमाशा संग-ए-लर्ज़ां का
सय्यद अली केथ्ली
कलाम
कब महकेगी फ़स्ल-ए-गुल कब बहकेगा मय-ख़ानाकब सुब्ह-ए-सुख़न होगी कब शाम-ए-नज़र होगी
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
अब्र है जाम है मीना है मय-ए-गुल-गूँ हैहै सब अस्बाब-ए-तरब साक़ी-ए-गुलफ़ाम नहीं
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
मैं हूँ मज़हर-ए-दो-’आलम मैं हूँ सिर्र-ए-इस्म-ए-आ’ज़ममैं हूँ जल्वा-गाह इस दम बि-लिबास-ए-फ़ी-फ़नाई
ख़लील
कलाम
ख़ानक़ाह-ए-चिश्त में जिस ने क़दम पहला रखादूसरा उस का क़दम फिर अर्श-ए-बाला पर हुआ
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
मुश्किल जो 'नियाज़' आई तुम्हें फ़क़्र में दरपेशजा शाह-ए-नजफ़ हैदर-ए-कर्रार से कह दो
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
ये जफ़ा-ए-ग़म का चारा वो नजात-ए-दिल का आलमतिरा हुस्न दस्त-ए-ईसा तिरी याद रू-ए-मर्यम
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
कलाम
कहाँ ये 'इश्क़ का मरना कहाँ वो मौत सर पड़नायहाँ अब रूह-ए-क़ुदसी हों वहाँ ज़ेर-ए-ज़मीं सड़ना
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
कलाम
हज़रत-ए-इश्क़ आप होवें गर मुदर्रिस चंद रोज़फिर तो इल्म-ए-फ़क़्र की तहसील ख़ातिर-ख़्वाह हो