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कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
कलाम
तिरे दिल के टूटने पर है किसी को नाज़ क्या क्यातुझे ऐ 'जिगर' मुबारक ये शिकस्त-ए-फ़ातेहाना
जिगर मुरादाबादी
कलाम
कहीं सोज़-ए-जिगर में वो कहीं दर्द-ए-निहाँ हो करकहीं हैं वो किसी दिल में कहीं शोर-ओ-फ़ुग़ाँ हो कर
तसद्दुक़ अ’ली असद
कलाम
ज़िंदगी में आ गया जब कोई वक़्त-ए-इम्तिहाँइस ने देखा है 'जिगर' बे-इख़्तियाराना मुझे